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२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२४९)


पद:-

सिय राम के दर्शन भये नहीं सो तो वक्ता अज्ञानी है।

सुर मुनि सब कैसे मिलैं उसे पढ़ि सुनि बोलत मृदु बानी है।

जब कथा बन्द करिकै बैठैं मन करत फिरत सैलानी है।

अंधे कहैं कैसे गती होय आखिर होती हैरानी है।४।