२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२६०) (१)
दोहा:-
अर रर साधौ गुनौ कबीर।
इड़ा पिंगला एक हों सुखमन में चलि जाव।
तिरबेनी श्नान करि अन्धे कह हरषाव।
भला सब सुर मुनि तुमरी जै बोलैं।४।
दोहा:-
अर रर साधौ गुनौ कबीर।
इड़ा पिंगला एक हों सुखमन में चलि जाव।
तिरबेनी श्नान करि अन्धे कह हरषाव।
भला सब सुर मुनि तुमरी जै बोलैं।४।