२८० ॥ श्री राम दीन जी॥
जारी........
दोहा:-
राम नाम का कोष है, इनके पास अथाह।
दीन भाव ह्वै जाय जो, करैं रंक से साह॥
कजली:-
लक्षमी नारायण संग सोहैं क्षीर समुद्र शेष की सेज।
कोटिन भानु लजाँय जहाँ पर ऐसा वहाँ क तेज।
झाँकी की छबि बरनि सकै को कबिन की गति दुमरेज।
पालन करत जक्त पितु माता नित जल भोजन भेज।
कृष्णदास कहैं शब्द गहै सूरति से सो रँग रेज।
निर्विकार निर्गुण अविनाशी बिछी श्वेत तँह मेज।६।
कजरी:-
श्यामा श्याम के संग में डोलैं बृज कुञ्जन में करैं किलोल।
गले में बाँह टेढ़ि दृग चितवनि बोलैं मधुरे बोल।
झाँकी की छबि बरनि सकै को उपमा अमित अतौल।
दुइ सहस्र हैं नेत्र शेष के निरखत रूप अमोल।४।
सहसौ मुख अस बन्द भये हैं मानहु भये अडोल।
नभ ते पुष्प देव मुनि बरसैं निरखि बजावैं ढोल।
धनि धनि बृजबासी नन्द यशुमति निरखैं नित दृग खोल।
कृष्णदास कहैं प्रेम भाव करि चहै सो लै ले मोल।८।
कजरी:-
राजैं कृष्ण के संग रुक्मिणी राधे सति भामा गुणवान।
पुरी द्वारिका परम मनोहर सुर मुनि जहाँ लुभान।
जग मग जग मग होति चहुँ दिशि कोटिन भानु समान।
दरशन करत हरत अघ सारे तन मन प्रेम से मान।४।
झाँकी की छबि बरनि सकै को नैनन नहीं जबान।
निरखत बनै परै नहिं पलकैं ज्ञान गुमान हेरान।
ध्यान समाधि क काम नहीं है मानो बचन प्रमान।
कृष्णदास कहैं हरि सर्वेश्वर सब ज्ञानन की जान।८।
कजरी:-
झूला झूलि रहे गिरधारी संग बृष भानु दुलारी हैं।
ढारैं हिलि मिलि सब सखि देवैं सुघर कुमारी हैं॥
यमुना तट बंसी बट तरु अति सुन्दर डारी हैं।
रेशम की पचरंगी डोरी सुन्दर सारी हैं।
मलया गिरि चन्दन सिंहासन खुशबू न्यारी हैं।५।
कीम खाब बाफदा व मुसरू बिछे संवारी हैं।
साख में मखमल हरा लपेटा क्या हुशियारी हैं।
डोरी कटै न टूटै जासे मानो बचन करारी हैं।
ता में पड़ा हिंडोला सोहत युगुल बिहारी हैं।
झाँकी की छबि बरनि सकै को मंगल कारी हैं।१०।
यमुना मन्द मन्द तँह बहती पावन अति सुखकारी हैं।
शीतल मन्द सुगन्ध पवन तँह चलती प्यारी हैं।
फूलन की वर्षा सुर नभ ते करत निहारी हैं।
जय जय कार कि धुनि की गूँजनि बृज सुख भारी हैं।
राधे कृष्ण की मूरति सब जन हिये में धारी हैं।
कृष्णदास कहैं प्रिय प्रीतम पर हम बलिहारी हैं।१६।
कजरी:-
क्या बाँकी झाँकी बनी श्री अवधेश कुमारन की।
शिरन पै मुकुट श्रुतिन में कुण्डल जड़े सितारन की।
राम भरत औ लखन शत्रुहन भव भय टारन की।
बिष्णु शम्भु औ शेष जिन्होंने पृथ्वी धारन की।४।
आये प्रभु के संग चरित लीला बिस्तारन की।
गाय गाय नर भव निधि तरिहैं सबै सुधारन की।
कृष्णदास नित बिनय करैं चारौं सरकारन की।
जारी........